
बात उस वक़्त की है जब चितौड़ नरेश महाराणा संग्राम सिंघ की सहायता से रायमल राठौड़ ईडर राज्य का स्वामी बना। यह सब गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर को नहीं जमी तो उसने रायमल राठौड़ को अपदस्थ करने के लिए सेना भेजी जिसे रायमल ने परास्त कर दिया ।अबकी बार गुजरात सुल्तान ने अपने सेनानायक मुबारिज़ुल्मुल्क को विशाल सेना सहित ईडर भेजा । उसने ईडर पर अधिकार कर लिया तो रायमल को ईडर से भागकर चित्तौड़ आना पड़ा । महाराणा सांगा ने जब ये सुना तो वह गुजरात सुल्तान की हिमाकत से आग बबूला हो गए । वह ईडर के लिए सेना सहित रवाना हो लिए । उनके ईडर के समीप पहुँचने से पहले ही सेनानायक मुबारिज़ुल्मुल्क घबराकर वहाँ से भागा और अहमदनगर के किले में जा बैठा । महाराणा सांगा ने रायमल राठौड़ को ईडर की गद्दी पर बैठाया फिर उन्होंने अहमदनगर के किले को जा घेरा । मुसलमान किले से बाहर नहीं निकले । किला बड़ा मज़बूत था और अंदर प्रवेश के लिए दरवाज़ा तोड़ना अतिआवश्यक था । किंवाड़ तोड़ने का कार्य सरदार डूंगर सिंघ चौहान के नेतृत्व में हो रहा था । क़िले के किंवाड़ो पर लोहे के बड़े-बड़े नुकीले भाले लगे हुए थे । उन्होंने हाथी के मोहरा करवाया मगर हाथी बार-बार किंवाड़ तोड़ने की बजाय भालों के डर से वापस मुड़कर आ जाता । यह सब देखकर डूंगर सिंघ का वीर पुत्र कान सिंघ चौहान आगे बढ़े और अद्भुत साहस दिखाते हुए ऊपर चढ़कर अपने हाथों से किंवाड़ के उन भालों को पकड़ लिया । उन्होंने महावत को आदेश दिया कि वो हाथी को आगे ठेले । आदेश का पालन हुआ और हाथी को महावत ने आगे बढ़ाकर टक्कर दिलाई । हाथी के मस्तक और किंवाड़ के भालों के बीच कान सिंघ की छाती आ जाने की वजह से हाथी के मोहरे से क़िले का किवाड़ (प्रवेश द्वार) टूट गया । साथ ही वीर कान सिंघ चौहान ने प्राण त्याग दिए । इस प्रकार एक चौहान राजपूत मौत से गठजोड़ कर स्वर्ग सिधार गया । इधर सेना क़िले घुस गई । परिणामस्वरूप महाराणा संग्राम सिंघ (साँगा) विजय हुए ।
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